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युसरा फातिमा - YUSRA FATIMA | छोटी उम्र में बडा कारनामा

बिहार के सिवान जिले की युसरा फातिमा ने हाल ही में अपनी लेखनी के दम पर ब्रावो इंटरनेशनल बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज कराकर नया रिकॉर्ड बनाया है। यह 15 साल कि नवजवान शायरा अब तक चार हिंदी नज्मो का मज्मूआ लिख चुकी हैं: जज्बा, मेरे हिस्से की कोशिश, शाम और तनहाई, और बेरुखी। उन्होंने अपनी पहली किताब महज 12 साल की उम्र में शाया की थी।


युसरा की नज्मे समाजी मुद्दों पर मर्कुज होती हैं, जिनमें खावातीन को बा इख्तीयार बनाना , तालीम और समाजी बदलाव की झलक मिलती है। उनकी कामबियो ने उनके पखानदान और मुकामी अवाम को फकर किया है, और वह नवजवानो के लिए तहरिक बन चुकी हैं
Yusra-Fatima
Yusra Fatima

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युसरा फातिमा का परिचय और पारिवारिक पृष्ठभूमि

युसरा फातिमा बिहार के सिवान जिले के तेतहली गांव की रहने वाली हैं। 15 साल की युसरा आज देशभर में अपनी लेखनी के लिए पहचानी जा रही हैं। उनकी कामयाबी न सिर्फ उनकी हुनर को उजागर करती हैं, बल्कि उनके खानदान और गांव की भी फक्रिया हचान बन गई हैं।

खानदानी पस ए मंजर

युसरा का खानदान एक आम मिडल क्लास खानदान है। उनके वालेद शकील अहमद गांव में रहते हैं और खानदान के तालुक से उनकी जिम्मेदारी हमेशा बुन्यादी रही है। उनकी मां ने भी युसरा को पढ़ाई और तख्गलीकी सर्लिगार्एमियो से तहरिक डी है . युसरा के वालैदैन का मानना है कि तालीमऔर तहरिक बच्चों को सही सिम्त में आगे बढ़ने में मदद करती है​

इब्तेदाई तालीम और तहरिक

युसरा ने अपनी इब्तेदाई तालीम गांव के ही स्कूल में पूरी की। छोटी उम्र से ही उनका रुझान नझ्में लिखने की तरफ था। खानदान और असातेजा ने उनकी इस दिलचस्कोपी को  पहचाना और उन्हें हौसला अफ्किजाई कि। 8 साल की उम्र में उन्होंने नझ्मे लीखनी शुरू कीं और महज 12 साल की उम्र में उनकी पहली किताब शाया हो गई​

खानदान क हौसला अफ्जाई

युसरा की कामयाबी के पीछे उनके खानदान का किरदार काफी अहम है। उनके वालेद ने हमेशा उनके लिखने और पढ़ाई के लिए वक्त और जराये मुहीया कराये। गांव में रहते हुए भी उन्होंने याकिनी बनाया  कि युसरा को उनकी हुनर को निखारने का हर मौका मिले। युसरा खुद मानती हैं कि उनके वालैदैन और असातेजा  का शिराकत उनके इस सफर में बेहद अहम है​

युसरा की यह कहानी न सिर्फ उनकी मेहनत और लगन को दिखाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि सही मार्गदर्शन और सपोर्ट से छोटे गांवों में भी बड़े सपने साकार हो सकते हैं।

Yusra-Fatima
Yusra Fatima 

युसरा फातिमा: एक छोटी उम्र की बड़ी उपलब्धि-कारनामा

बिहार के सिवान जिले के एक छोटे से गांव तेतहली की 15 साल की युसरा फातिमा ने वो कर दिखाया है, जो बड़े-बड़े लेखक भी सोचते रह जाते हैं। इतनी कम उम्र में युसरा ने नज्कमो-विताओं की चार किताबें लिखकर ब्रावो इंटरनेशनल बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज करा लिया है। उनकी ये कामयाबी सिर्फ उनके गांव के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे मुल्क के लिए फक्र कि  बात है।

युसरा का सफर: कैसे हुई शुरुआत?

युसरा फातिमा ने महज 8 साल की उम्र में नज्मे लिखना  शुरू किया था । उनका पहला नज्मो का मज्मूआ जज्बा 12 साल की उम्र में 2019 में शाया  हुआ। उनकी नज्मो में जजबात की गहराई, समाजी मुद्दों पर फिक्र और खावातीन को बा इख्तीयार बनाना इस बात  की झलक साफ नजर आती है। इसके बाद उन्होंने मेरे हिस्से की कोशिश, शाम और तनहाई, और बेरुखी जैसी किताबें लिखीं, जो अप्रैल 2023 में शाया हुई थी​

युसरा की नज्मो कि खासियत

युसरा की नझमें न सिर्फ पढ़ने वालों को मुतास्सीर करती हैं, बल्कि समाज में बदलाव का पैगाम भी देती हैं। उनकी नझ्मों में खावातीन के हक, तालीम कि अहमियत , और समाज में बदलाव की जरूरत को बेहद खूबसूरत अंदाज में पेश किया गया है। इतना ही नहीं, उनकी रचनाएं इस बात कि मिसाल हैं कि अगर हौसला और मेहनत हो, तो कोई भी बड़ी कामयाबी हासिल की जा सकती है।

खानदान और समाज की शिराकत

युसरा की इस कामयाबी के पीछे उनके खानदान और असातेजा का बड़ा शिराकत है। उनके वालेद शकील अहमद ने हमेशा उन्हें हौसला दिया है । उनका मानना है कि बच्चों को अगर सही सिम्औत में हिमायत मिले, तो वह हर मुश्किल को पार कर सकते हैं। युसरा की कामयाबी ने उनके गांव में भी एक अलग पहचान बनाई है। उनके गांव और सिवान जिले के लोग फक्र महसूस कर रहे हैं कि उनकी मिट्टी से एक इतनी शानदार लड़की ने जन्म लिया​.

नवजवानो के लिए मशाल ए राह 

युसरा फातिमा की कहानी हर उस नवजवान के लिए एक सबक है, जो सोचता है कि कामयाबी के लिए उम्र या बड़े वासायल चाहिए। युसरा ने यह साबित कर दिया कि अगर दिल में सच्चा जज्बा और मेहनत करने की लगन हो, तो कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है। उन्होंने दिखा दिया कि टैलेंट उम्र नहीं देखता।

मोआशरे और अदब में शिराकात 

युसरा ने अपनी नज्मो के जरीये से समाज को एक बेहतर सिम्त देने की कोशिश की है। उनकी फन में यह साफ दिखता है कि वे सिर्फ लिखने के लिए नहीं लिखतीं, बल्कि उनके अल्फाज में समाज को चौकस करने का मक्सद छुपा है। खावातीन को बा इख्तीयार बनाना और तालीम जैसे मुद्दों को इतनी कम उम्र में उठाना अपने आप में बड़ी बात है।

आगे का सफर

युसरा की इस कामयाबी के बाद उनके खानदान, गांव, और रियासत से ही नहीं, बल्कि देशभर से उन्हें मुबारकबाद मिल रही हैं। उन्होंने अब तक जो किया है, वो सिर्फ शुरुआत है। उनका यह सफर आने वाले वक्त में और भी बड़े मुकाम हासिल करेगा।

युसरा फातिमा की कहानी हर किसी को यह समझाने के लिए काफी है कि मेहनत और लगन से कुछ भी मुमकिन है। उनकी नज्मे और कामयाबी न सिर्फ अदब के दिवानो के लिए, बल्कि हर नवजवान के लिए एक तहरिक हैं। युसरा ने साबित कर दिया कि ख्वाब पूरे करने के लिए किसी बड़े शहर या महंगे जरायेकी जरूरत नहीं होती। बस अपने अंदर हिम्मत और मेहनत का जुनून चाहिए।

"अगर युसरा यह कर सकती हैं, तो आप भी कर सकते हैं।"

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