EVM बनाम Ballot: क्या वोट कि चोरी संभव है ?
🗳️ परिचय: जब वोटिंग
प्रणाली बनी बहस का मुद्दा
"अगर वोटिंग निष्पक्ष
होती, तो बीजेपी चुनाव नहीं जीत पाती…"
ये शब्द थे राहुल गांधी के,
जो उन्होंने हाल
ही में एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहे। उन्होंने सीधे तौर पर EVM (Electronic Voting Machine) की निष्पक्षता पर सवाल
उठाए और चुनावों में बैलेट
पेपर को वापस लाने की मांग की।
इस बयान ने देशभर में एक नई बहस को जन्म दिया — क्या भारत
की वर्तमान वोटिंग प्रणाली भरोसेमंद है?
क्या बैलेट पेपर
वापसी का रास्ता है?
क्या EVM को तकनीकी वरदान मानें
या लोकतंत्र में संभावित खतरा?
वहीं दूसरी ओर, अमेरिका जैसे देश अब भी पेपर बैलेट का इस्तेमाल कर रहे हैं, जहाँ चुनाव परिणामों की
गिनती कई दिनों तक चलती है, लेकिन जनता का भरोसा बना रहता है।
इस ब्लॉग में हम भारत और अमेरिका की वोटिंग प्रणालियों की
तुलना करेंगे —
समझेंगे कि कौन-सी
प्रणाली कितनी पारदर्शी, प्रभावी और लोकतांत्रिक है।
🗳️ वोटिंग प्रणालियों का संक्षिप्त परिचय
भारत और अमेरिका दोनों लोकतांत्रिक देश हैं, लेकिन इनकी वोटिंग प्रणाली एक-दूसरे से बिल्कुल अलग है — तकनीक, नियंत्रण और पारदर्शिता के मामले में।
🇮🇳 भारत: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM)
भारत में वोटिंग के लिए मुख्य रूप से EVM का इस्तेमाल किया जाता है, जो दो भागों में होती है:
-
बैलट यूनिट (Ballot Unit):
मतदाता इस यूनिट पर अपने पसंदीदा उम्मीदवार के सामने वाले बटन को दबाकर वोट करता है। -
कंट्रोल यूनिट (Control Unit):
यह चुनाव अधिकारी के पास होती है और यह बैलेट यूनिट को नियंत्रित करती है। -
VVPAT (Voter Verified Paper Audit Trail):
हर वोट के साथ एक पर्ची निकलती है जो कुछ सेकंड तक स्क्रीन पर दिखाई देती है, ताकि मतदाता यह पुष्टि कर सके कि उसका वोट सही व्यक्ति को गया है।
📌 भारत में EVMs का प्रयोग 2004 से सभी लोकसभा चुनावों में किया जा रहा है।
🇺🇸 अमेरिका: पेपर बैलेट सिस्टम
अमेरिका में ज़्यादातर राज्य पेपर बैलेट्स का प्रयोग करते हैं, जो मुख्यतः दो तरीकों से गिने जाते हैं:
-
ऑप्टिकल स्कैनर (Optical Scanners):
मतदाता बैलेट पेपर भरता है, जिसे मशीन स्कैन करके डिजिटल रूप से दर्ज कर लेती है। -
हाथ से गिनती (Manual Counting):
कुछ इलाकों में आज भी पारंपरिक तरीके से मतों की गिनती की जाती है।
📌 अमेरिका की चुनाव प्रणाली पूरी तरह विकेंद्रीकृत (decentralized) है — हर राज्य और यहां तक कि काउंटी अपने नियम और टेक्नोलॉजी चुनते हैं।
मुख्य अंतर:
-
भारत का सिस्टम केंद्रीकृत और डिजिटल है, जबकि
-
अमेरिका का सिस्टम विकेंद्रीकृत और शारीरिक प्रमाण आधारित है।
📜 इतिहास और विकास
भारत और अमेरिका दोनों देशों की चुनावी व्यवस्था का विकास उनके राजनीतिक, सामाजिक और तकनीकी परिवेश के अनुसार हुआ है। आइए समझते हैं कि कैसे इन दोनों देशों ने अपनी-अपनी वोटिंग प्रणाली को अपनाया।
🇮🇳 भारत में EVM का इतिहास
भारत में पहले बैलेट पेपर का ही इस्तेमाल होता था, लेकिन 1980 के दशक में जब बूथ कैप्चरिंग, फर्जी वोटिंग और हिंसा जैसी घटनाएं बढ़ने लगीं, तो चुनाव प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे।
प्रमुख घटनाएं:
-
1982: केरल के पारुर विधानसभा उपचुनाव में पहली बार प्रयोग के तौर पर EVM का उपयोग किया गया।
-
1998: मध्यप्रदेश, दिल्ली और राजस्थान के कुछ हिस्सों में प्रयोग।
-
2004: पहली बार देशभर में सभी लोकसभा सीटों पर पूरी तरह से EVM का उपयोग किया गया।
-
2013: सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर VVPAT (वोटर वेरीफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल) को EVM से जोड़ा गया, जिससे पारदर्शिता और भरोसे को बल मिला।
❝EVM का विकास भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) द्वारा किया गया।❞
🇺🇸 अमेरिका में बैलेट पेपर प्रणाली का इतिहास
अमेरिका में शुरू से ही चुनावों के लिए बैलेट पेपर का उपयोग होता रहा है। हालांकि 20वीं सदी के मध्य में कुछ जगहों पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (DRE - Direct Recording Electronic) का प्रयोग शुरू हुआ, लेकिन यह कभी सार्वभौमिक नहीं हुआ।
प्रमुख बदलाव:
-
2000: अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव (Bush vs. Gore) में फ्लोरिडा विवाद के बाद वोटिंग प्रणाली की विश्वसनीयता पर राष्ट्रीय बहस छिड़ी।
-
2002: Help America Vote Act (HAVA) पास किया गया, जिससे कई राज्यों ने DRE और ऑप्टिकल स्कैनर सिस्टम अपनाए।
-
2010 के बाद: साइबर सुरक्षा को लेकर चिंताओं के कारण अधिकांश राज्यों ने वापस पेपर बैलेट + स्कैनिंग प्रणाली की ओर रुख किया।
❝आज अमेरिका के 90% से अधिक मतदाता पेपर बैलेट से ही वोट देते हैं।❞
(स्रोत: Verified Voting Foundation, 2024)
निष्कर्ष:
-
भारत ने तकनीक को अपनाकर तेज़, कम खर्चीली और सुरक्षित प्रणाली की दिशा में कदम बढ़ाया।
-
अमेरिका ने अनुभवों से सीखा और नागरिकों के विश्वास और पारदर्शिता को प्राथमिकता दी।
⚖️ प्रमुख अंतर: भारत बनाम अमेरिका वोटिंग
प्रणाली
भारत और अमेरिका की वोटिंग प्रणालियों में कई बुनियादी अंतर हैं — तकनीकी ढांचे से लेकर वोट की गिनती तक। नीचे दी गई तुलना तालिका (comparison table) इन अंतर को सरलता से समझने में मदद करेगी:
📊 तुलना
तालिका:
बिंदु |
🇮🇳
भारत (EVM
आधारित) |
🇺🇸
अमेरिका
(बैलेट आधारित) |
प्रमुख प्रणाली |
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) + VVPAT |
पेपर बैलेट + ऑप्टिकल स्कैनर / हाथ से गिनती |
टेक्नोलॉजी पर निर्भरता |
उच्च |
मध्यम |
गिनती का समय |
तेज़ (3–4 घंटे में परिणाम) |
धीमा (कई घंटे या दिन लग सकते हैं) |
साइबर सुरक्षा खतरे |
कम (standalone machine) |
अधिक (नेटवर्क आधारित सिस्टम की संभावना) |
मतदाता सत्यापन |
VVPAT पर्ची कुछ सेकंड के लिए |
स्थायी पेपर बैलेट ट्रेल |
पारदर्शिता और विश्वास |
तकनीकी पारदर्शिता की जरूरत |
पारंपरिक ट्रस्ट पर आधारित |
धांधली की संभावना |
कम, लेकिन आरोप लगते हैं |
कम, लेकिन recount संभव |
लागत (प्रति चुनाव) |
तुलनात्मक रूप से कम |
अधिक (प्रिंटिंग, स्टाफ, गिनती) |
प्रणाली का नियंत्रण |
केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित |
विकेंद्रीकृत (हर राज्य की अपनी प्रणाली) |
🧠
गहराई से विश्लेषण:
·
भारत की प्रणाली अधिक केंद्रीकृत और स्वचालित है
— जिससे चुनाव तेज़ी से हो जाते हैं, लेकिन उसमें तकनीकी विश्वास ज़रूरी होता है।
· अमेरिका की प्रणाली कागज़ पर आधारित और विकेंद्रीकृत है — जिससे परिणाम धीमे आते हैं, लेकिन मतदाता के पास हमेशा भौतिक प्रमाण होता है।
✅❌ EVM के पक्ष और विपक्ष
भारत में EVM यानी Electronic Voting Machine ने चुनाव प्रणाली को तेज़, सरल और अपेक्षाकृत सुरक्षित बनाया है। लेकिन इसके साथ कई बहसें और विवाद भी जुड़े हैं। आइए इसे दोनों दृष्टिकोण से समझते हैं।
✅ EVM के पक्ष में तर्क (Advantages)
-
तेज़ परिणाम:
वोटों की गिनती बहुत तेज़ी से होती है। आमतौर पर 3–4 घंटे में पूरे परिणाम सामने आ जाते हैं। -
बूथ कैप्चरिंग से बचाव:
एक बार में सिर्फ 5 वोट डाले जा सकते हैं, फिर मशीन अपने-आप लॉक हो जाती है। इससे बड़े पैमाने पर धांधली कठिन होती है। -
कम लागत:
पेपर बैलेट की तुलना में प्रिंटिंग, स्टोरेज और ट्रांसपोर्टेशन की लागत बहुत कम है। -
पर्यावरण के अनुकूल:
कागज़ की आवश्यकता लगभग समाप्त हो जाती है, जिससे पेड़ों की कटाई कम होती है। -
सुलभता (Accessibility):
अशिक्षित और दिव्यांग मतदाता भी आसानी से बटन दबाकर वोट डाल सकते हैं। -
VVPAT के ज़रिए पारदर्शिता:
मतदाता को उसके वोट की एक प्रिंटेड पर्ची कुछ सेकंड के लिए दिखाई देती है, जिससे वह पुष्टि कर सकता है कि वोट सही गया।
❌ EVM के खिलाफ तर्क (Disadvantages)
-
हैकिंग की संभावना (सैद्धांतिक):
हालांकि EVM इंटरनेट से नहीं जुड़ी होती, फिर भी कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इन मशीनों में छेड़छाड़ संभव है — खासकर यदि किसी को इनसाइड एक्सेस हो। -
पारदर्शिता की कमी:
आम नागरिक यह नहीं देख सकता कि मशीन के अंदर वोट किसे गया — सिर्फ VVPAT से एक अस्थायी भरोसा मिलता है। -
तकनीकी विफलता का जोखिम:
कई मामलों में मशीनों ने काम करना बंद कर दिया, जिससे मतदान प्रभावित हुआ। -
राजनीतिक आरोप:
EVM को लेकर कई पार्टियों ने आरोप लगाए हैं कि कुछ चुनावों में मशीनें "एक ही पार्टी" को वोट दर्ज कर रही थीं। हालांकि अब तक कोई पुख्ता सबूत सामने नहीं आया। -
जनता का विश्वास चुनौती में:
सोशल मीडिया और विपक्षी नेताओं द्वारा लगातार सवाल उठाने से मतदाताओं के मन में शक पैदा होता है।
निष्कर्ष:
EVM एक तकनीकी समाधान है, लेकिन उसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि लोग उसमें कितना भरोसा करते हैं। तकनीक जितनी भी उन्नत हो, लोकतंत्र में विश्वास और पारदर्शिता ही सबसे बड़ी पूंजी होती है।
✅❌ बैलेट पेपर के पक्ष और विपक्ष
बैलेट पेपर प्रणाली पारंपरिक, प्रत्यक्ष और भौतिक प्रमाण आधारित वोटिंग प्रणाली है, जो अब भी अमेरिका जैसे विकसित देश में व्यापक रूप से उपयोग में है। इसके समर्थक इसे विश्वसनीय, पारदर्शी और लोकतांत्रिक नियंत्रण का प्रतीक मानते हैं, जबकि आलोचक इसे धीमा, महंगा और असुरक्षित बताते हैं।
✅ बैलेट पेपर के पक्ष में तर्क (Advantages)
-
पूरी पारदर्शिता और ट्रेसबिलिटी:
हर वोट का भौतिक प्रमाण मौजूद होता है, जिसे दोबारा गिना जा सकता है। इससे जनता और प्रत्याशियों दोनों में भरोसा बढ़ता है। -
हैकिंग असंभव:
यह पूरी तरह ऑफ़लाइन प्रणाली है, जिसमें किसी डिजिटल छेड़छाड़ या सॉफ़्टवेयर बग का कोई सवाल नहीं उठता। -
जनता में विश्वास अधिक:
लोगों को जो दिखता है, वो ज़्यादा भरोसेमंद लगता है। कागज़ पर वोट डालना उन्हें भरोसेमंद अनुभव देता है। -
न्यायिक पुनर्गणना संभव:
विवाद की स्थिति में मतों की दोबारा गिनती (recount) करवाई जा सकती है, जिससे निष्पक्षता बनी रहती है।
❌ बैलेट पेपर के खिलाफ तर्क (Disadvantages)
-
बूथ कैप्चरिंग की संभावना:
पहले भारत में बैलेट पेपर का दुरुपयोग बड़े पैमाने पर होता था, जहां गुंडों द्वारा बैलेट बॉक्स भर दिए जाते थे। -
गिनती में मानवीय त्रुटियां:
मतगणना में समय ज्यादा लगता है और गड़बड़ी की संभावना भी बनी रहती है। -
लागत अधिक:
बैलेट पेपर की छपाई, वितरण, सुरक्षा और गिनती में भारी खर्च होता है। -
पर्यावरणीय नुकसान:
लाखों टन कागज़ हर चुनाव में इस्तेमाल होता है, जिससे पर्यावरण पर नकारात्मक असर पड़ता है। -
लॉजिस्टिक्स की जटिलता:
बैलेट बॉक्स का परिवहन, सुरक्षा, भंडारण आदि बहुत मुश्किल और संवेदनशील कार्य होता है।
निष्कर्ष:
बैलेट पेपर प्रणाली भरोसे और पारदर्शिता का प्रतीक तो है, लेकिन उसके साथ धीमी गति, अधिक खर्च और सुरक्षा की चुनौतियां भी जुड़ी हैं। यह प्रणाली उन्हीं जगहों पर बेहतर मानी जाती है जहां संसाधन अधिक हों और नागरिकों में लोकतांत्रिक अनुशासन मज़बूत हो।
⚠️ भारत और अमेरिका में चुनावी विवाद और आरोप
चाहे तकनीकी हो या पारंपरिक — कोई भी वोटिंग प्रणाली विवादों और संदेहों से पूरी तरह अछूती नहीं रही है। भारत और अमेरिका, दोनों ही लोकतंत्रों में समय-समय पर वोटिंग सिस्टम की निष्पक्षता और पारदर्शिता को लेकर सवाल उठते रहे हैं।
🇮🇳 भारत में EVM को लेकर विवाद
EVM के उपयोग को लेकर भारत में कई राजनीतिक दलों और संगठनों ने सवाल उठाए हैं, खासकर जब परिणाम उम्मीद के विपरीत आते हैं।
प्रमुख विवाद:
-
2010 - ह्यूस्टन सम्मेलन:
भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त डॉ. हरि प्रसाद ने EVM की सुरक्षा को लेकर सवाल उठाए और एक मशीन को कथित तौर पर हैक करने का दावा किया। -
2017 - दिल्ली विधानसभा उपचुनाव:
आम आदमी पार्टी ने EVM में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए विधानसभा में एक डेमो EVM से "डेमो वोटिंग" कर दिखाई। -
2019 लोकसभा चुनाव:
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने कई राज्यों में EVM के एक ही पार्टी के पक्ष में लगातार वोट रिकॉर्ड करने का आरोप लगाया। -
VVPAT की गिनती को लेकर असहमति:
विपक्ष की मांग थी कि कम से कम 50% VVPAT पर्चियों का मिलान EVM वोटों से किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने केवल 5 रैंडम वीवीपैट के आदेश दिए।
❝हालांकि अब तक किसी भी मामले में कोई ठोस कानूनी प्रमाण सामने नहीं आया है कि EVM हैक या प्री-प्रोग्राम की गई थी।❞
🇺🇸 अमेरिका में बैलेट प्रणाली और चुनावी विवाद
हालांकि अमेरिका में बैलेट पेपर प्रणाली का उपयोग होता है, फिर भी यहां भी चुनावों को लेकर राजनीतिक और कानूनी विवाद सामने आए हैं।
प्रमुख विवाद:
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2000 - फ्लोरिडा विवाद (Bush vs. Gore):
खराब डिजाइन वाले बैलेट पेपर और हैंगिंग चैड्स (unclear punched votes) की वजह से नतीजे विवादित हो गए और मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। -
2016 - रूसी हस्तक्षेप का आरोप:
यह दावा किया गया कि रूस ने अमेरिकी चुनाव प्रणाली को प्रभावित करने की कोशिश की, हालांकि बैलेट सिस्टम को कोई प्रत्यक्ष नुकसान नहीं हुआ। -
2020 - डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ‘चोरी’ के आरोप:
ट्रम्प ने दावा किया कि चुनाव "चोरी" किए गए हैं, खासकर मेल-इन बैलेट्स को लेकर। लेकिन दर्जनों कोर्ट केसों में ये दावे खारिज हुए।
❝अमेरिका में पारदर्शी कागज़ी रिकॉर्ड और स्वतंत्र जाँच प्रक्रिया के चलते आरोपों की निष्पक्ष जांच संभव होती है।❞
निष्कर्ष:
-
भारत में EVM पर तकनीकी संदेह और राजनीतिक आरोप लगते हैं, लेकिन सिस्टम की गति और कुशलता की भी सराहना होती है।
-
अमेरिका में बैलेट प्रणाली पर जनता का विश्वास मजबूत है, लेकिन राजनीतिक ध्रुवीकरण और सूचना युद्ध से विवाद उत्पन्न होते हैं।
🔍 वोटर लिस्ट में फर्जी नामों का आरोप (2024)
2024 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी ने चुनाव आयोग और सरकार पर आरोप लगाया कि BJP ने वोटर लिस्ट में लाखों डुप्लिकेट और फर्जी नाम जोड़वाए, जिनके जरिए अलग-अलग बूथों पर एक ही व्यक्ति कई बार वोट डाल सकता है।
उन्होंने दावा किया कि:
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एक ही नाम और जन्मतिथि वाले लाखों वोटर्स को जानबूझकर लिस्ट में रखा गया।
-
ये सब BJP को चुनावी फायदा पहुंचाने के लिए किया गया।
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उन्होंने चुनाव आयोग से वोटर लिस्ट की public audit की मांग भी की।
📌 यह आरोप EVM से अलग होकर, चुनाव की आधारभूत निष्पक्षता — यानी मतदाता सूची की शुद्धता पर सवाल खड़ा करता है।
🗣️ "EVM के साथ मिलकर अगर voter list में ही गड़बड़ी कर दी जाए, तो पूरा चुनाव ही बेमानी हो जाता है…" – राहुल गांधी, प्रेस कॉन्फ़्रेंस, जून 2024
हालांकि चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज किया और कहा कि वोटर लिस्ट की समीक्षा नियमित होती है, लेकिन इस मुद्दे ने डिजिटल चुनाव प्रणाली की व्यापक पारदर्शिता को फिर से बहस के केंद्र में ला दिया।
🧾 निष्कर्ष
और सुझाव
✍️
निष्कर्ष:
भारत और अमेरिका — दोनों दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं,
लेकिन उनकी वोटिंग प्रणालियाँ बिल्कुल अलग हैं।
भारत जहां EVM आधारित डिजिटल
प्रणाली पर भरोसा करता है, वहीं अमेरिका अब भी पेपर बैलेट को लोकतांत्रिक
पारदर्शिता का प्रतीक मानता है।
भारत |
अमेरिका |
तेज़ और सस्ता |
भरोसेमंद लेकिन धीमा |
तकनीकी दक्ष |
पारंपरिक और पुन: जाँच योग्य |
केंद्रीकृत प्रणाली |
विकेंद्रीकृत नियंत्रण |
दोनों मॉडलों की अपनी-अपनी ताकत
और कमज़ोरियां हैं। असल में, कोई भी प्रणाली पूर्ण
नहीं है — लेकिन उसका लोकतांत्रिक
मूल्य जनता के विश्वास से तय होता है, न कि सिर्फ तकनीक से।
🛠️ सुझाव:
भारत के लिए:
1.
VVPAT पर्चियों की गिनती को अधिक व्यापक बनाना — ताकि जनता का विश्वास और मज़बूत हो।
2.
EVM की थर्ड-पार्टी ऑडिटिंग को नियमित करना।
3.
जनजागरूकता
अभियान चलाना कि EVM कैसे काम करती है और उसमें
धांधली क्यों मुश्किल है।
अमेरिका के लिए:
1.
मतगणना
प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए टेक्नोलॉजी का प्रयोग, लेकिन पारदर्शिता से
समझौता न करते हुए।
2.
बैलेट
डिज़ाइन को सरल और स्पष्ट रखना ताकि गलत वोटिंग से बचा
जा सके।
3.
मेल-इन
बैलेट प्रणाली में सुरक्षा प्रोटोकॉल और पब्लिक ट्रस्ट बनाए
रखना।
🔚 अंतिम विचार:
लोकतंत्र सिर्फ वोट
डालने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि उस प्रक्रिया
में जनता के भरोसे की परीक्षा है।
चाहे वह बटन दबाने से हो या कागज़ पर निशान लगाने से
— जब तक चुनाव स्वतंत्र,
निष्पक्ष
और पारदर्शी हैं, तभी कोई प्रणाली कामयाब है।
❓ FAQs
1. भारत में EVM कब से इस्तेमाल हो रही है?
➡️ भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का उपयोग सबसे पहले 1982 में केरल के एक उपचुनाव में प्रयोगात्मक रूप से किया गया था। पूरे देश में व्यापक स्तर पर इसका उपयोग 2004 के आम चुनावों से शुरू हुआ।
2. क्या EVM को हैक किया जा सकता है?
➡️ आधिकारिक रूप से भारत की EVM एक स्टैंडअलोन मशीन होती है, यानी वह इंटरनेट या किसी नेटवर्क से जुड़ी नहीं होती। इसलिए उसे दूर से हैक करना संभव नहीं माना जाता। हालांकि, इस पर राजनीतिक बहस और आरोप-प्रत्यारोप चलते रहते हैं।
3. अमेरिका में आज भी बैलेट पेपर का उपयोग क्यों होता है?
➡️ अमेरिका में चुनाव स्थानीय स्तर पर होते हैं, और हर राज्य को अपनी वोटिंग प्रणाली चुनने की स्वतंत्रता है। इसलिए कई राज्य पेपर बैलेट को प्राथमिकता देते हैं, ताकि पुनर्गणना और पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके।
4. बैलेट पेपर और EVM — कौन सा सिस्टम ज्यादा पारदर्शी है?
➡️ बैलेट पेपर में हर वोट का भौतिक रिकॉर्ड होता है, जिससे पारदर्शिता और पुनर्गणना की सुविधा बढ़ती है। जबकि EVM में पारदर्शिता की निगरानी के लिए VVPAT जैसे उपाय जोड़े गए हैं। दोनों प्रणालियों की अपनी-अपनी चुनौतियाँ और फायदे हैं।
5. क्या भारत में बैलेट पेपर सिस्टम वापस लाया जा सकता है?
➡️ तकनीकी रूप से यह संभव है, लेकिन इससे चुनाव प्रक्रिया धीमी और महंगी हो जाएगी। साथ ही, बड़े पैमाने पर मैनपावर की ज़रूरत होगी। हालांकि, कई विपक्षी दल इस दिशा में बहस करते रहे हैं।
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