डॉ. ज़ाकिर हुसैन: भारत के एक प्रेरणादायक राष्ट्रपति
जब भी भारत के
महान नेताओं और शिक्षाविदों की बात होती है,
तो डॉ. ज़ाकिर
हुसैन का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। वे न केवल भारत के तीसरे राष्ट्रपति थे, बल्कि एक विद्वान, स्वतंत्रता सेनानी
और शिक्षा सुधारक भी थे। उनकी जीवन यात्रा संघर्ष, समर्पण और
देशभक्ति से भरी हुई थी। आइए,
उनके जीवन के
प्रमुख पहलुओं पर एक नज़र डालते हैं।
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पारिवारिक पृष्ठभूमि (Family Background)
डॉ. ज़ाकिर हुसैन
का जन्म 8 फरवरी 1897 को हैदराबाद,
तेलंगाना में हुआ
था। वे पठान परिवार से थे,
लेकिन उनका
पालन-पोषण उत्तर प्रदेश के कायमगंज (फर्रुखाबाद) में हुआ। उनके पिता फ़िदा हुसैन
खान एक धार्मिक व्यक्ति थे,
और माता
नज़ीरुनिस्सा ने बच्चों को संस्कार और शिक्षा की अहमियत सिखाई। दुर्भाग्यवश, जब ज़ाकिर हुसैन केवल 10 वर्ष के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया। इस त्रासदी के बावजूद, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपनी शिक्षा जारी रखी।
शिक्षा और शुरुआती करियर (Education and early career)
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इस्लामिया हाई स्कूल, इटावा से प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) से स्नातक किया। शिक्षा के प्रति उनका गहरा लगाव था, जिसके चलते वे उच्च अध्ययन के लिए जर्मनी के बर्लिन विश्वविद्यालय गए और अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
भारत लौटने के बाद, वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ाने लगे।
लेकिन शिक्षा के प्रति उनका दृष्टिकोण केवल पढ़ाने तक सीमित नहीं था—वे चाहते थे
कि भारतीय शिक्षा प्रणाली सशक्त और राष्ट्रवादी बने। यही सोच उन्हें एक बड़े
शिक्षा सुधारक के रूप में उभरने में मदद करती है।
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका (Role in freedom struggle)
डॉ. ज़ाकिर हुसैन केवल एक शिक्षाविद ही नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम के सच्चे सिपाही भी थे। वे महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे और गांधीवादी सिद्धांतों का पालन करते थे। जब 1920 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया, तो ज़ाकिर हुसैन ने भी ब्रिटिश सरकार के अधीन चल रहे शिक्षण संस्थानों का बहिष्कार किया और अलीगढ़ छोड़ दिया।
उन्होंने 1920 में ही जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की स्थापना में अहम भूमिका निभाई। यह विश्वविद्यालय भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण केंद्र बना। उन्होंने न केवल संस्थान को आगे बढ़ाया, बल्कि छात्रों में देशभक्ति की भावना भी विकसित की।
देश के लिए योगदान (contribution to the country)
डॉ. ज़ाकिर हुसैन का सबसे बड़ा योगदान भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में था। वे शिक्षा को समाज सुधार और राष्ट्रीय विकास का सबसे प्रभावी माध्यम मानते थे। उनके कार्यों के कारण:
1. जामिया मिलिया इस्लामिया को एक
मजबूत शिक्षण संस्थान के रूप में स्थापित किया गया, जो आज भी शिक्षा
के क्षेत्र में अग्रणी है।
2. वे योजना आयोग और
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC)
से जुड़े रहे और
भारतीय शिक्षा प्रणाली को मजबूत किया।
3. वे 1957 से 1962
तक बिहार के
राज्यपाल भी रहे, जहाँ उन्होंने शिक्षा सुधारों
पर विशेष ध्यान दिया।
4. 1962 में उन्हें भारत का
उपराष्ट्रपति बनाया गया, जहाँ उन्होंने शैक्षिक सुधारों
को और अधिक गति दी।
राष्ट्रपति बनने की यात्रा (journey to become president)
डॉ. ज़ाकिर हुसैन
की विद्वता, निष्ठा और राष्ट्रप्रेम को
देखते हुए, उन्हें 13 मई 1967
को भारत का तीसरा
राष्ट्रपति बनाया गया। वे भारत के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति भी थे। राष्ट्रपति पद
पर रहते हुए उन्होंने शिक्षा और राष्ट्रीय एकता पर विशेष ध्यान दिया। उनका मानना
था कि शिक्षा केवल रोजगार का माध्यम नहीं है,
बल्कि यह समाज को
जागरूक और मजबूत बनाने का एक साधन है।
लेखन और पुस्तकें (Writing and Books)
डॉ. ज़ाकिर हुसैन एक कुशल लेखक भी थे। उन्होंने शिक्षा, समाज और भारतीय संस्कृति पर कई लेख और पुस्तकें लिखीं। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं:
1. "The
Dynamic University" – जिसमें उन्होंने
उच्च शिक्षा की भूमिका पर प्रकाश डाला।
2.
"Educational Planning in India" – जिसमें भारत में शिक्षा नीति के विकास पर चर्चा की
गई।
3. उन्होंने कई भाषाओं में अनुवाद
भी किए और उर्दू साहित्य को समृद्ध किया।
देशवासियों के लिए प्रेरणा (Inspiration for the country people)
डॉ. ज़ाकिर हुसैन का जीवन हमें कई महत्वपूर्ण बातें सिखाता है:
1. शिक्षा का महत्व: उन्होंने शिक्षा को सर्वोपरि माना और इसके प्रचार-प्रसार के लिए जीवन समर्पित कर दिया।
2. सहिष्णुता और एकता: वे विभिन्न धर्मों और समुदायों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देने में विश्वास रखते थे।
3. कर्तव्यनिष्ठा: उन्होंने हर जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभाया, चाहे वह शिक्षक के रूप में हो या राष्ट्रपति के रूप में।
4. सादगी और विनम्रता: उच्च पदों
पर रहने के बावजूद वे सादगीपूर्ण जीवन जीते थे।
निधन और विरासत (Demise and legacy)
डॉ. ज़ाकिर हुसैन
का निधन 3 मई 1969 को हुआ,
जब वे राष्ट्रपति
पद पर ही थे। वे भारत के पहले राष्ट्रपति थे जिनका कार्यकाल के दौरान ही देहांत
हुआ। उनके निधन से देश ने एक महान शिक्षाविद,
विचारक और नेता को
खो दिया।
निष्कर्ष (Conclusion)
डॉ. ज़ाकिर हुसैन का जीवन भारतीय समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने दिखाया कि शिक्षा केवल डिग्री प्राप्त करने का माध्यम नहीं, बल्कि समाज में बदलाव लाने की एक ताकत है। उनकी सोच, उनके विचार और उनके योगदान आज भी हमें प्रेरित करते हैं।
आज, जब हम शिक्षा की गुणवत्ता और सामाजिक एकता पर चर्चा करते हैं, तो हमें डॉ. ज़ाकिर हुसैन की शिक्षाओं से सीख लेनी चाहिए और उनके सपनों का भारत बनाने के लिए काम करना चाहिए।
"शिक्षा ही समाज का असली धन है, और इसे संवारने की जिम्मेदारी हम सभी की है।" -
डॉ. ज़ाकिर हुसैन
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